जैनमुनि के प्रवचनों से हुई हरियाणा के मानसून सत्र की शुरूआत, सोशल मीडिया पर बवाल

नई दिल्ली। लड़कियों को जींस पर बैन लगाने का सुझाव देने वाले जैनमुनि तरुण सागर ने प्रवचन देकर हरियाणा विधानसभा के मानसून सत्र की शुरूआत की। इतिहास में लोकतांत्रिक भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी धर्मगुरू ने विधानसभा सत्र की शुरूआत अपने प्रवचनों से की हो। यहां उन्होंने कहा “राजनीति (पत्नी) पर धर्म (पति) का अंकुश जरूरी है। धर्म पति है, राजनीति पत्नी। हर पति की यह ड्यूटी होती है अपनी पत्नी को संरक्षण दे। हर पत्नी का धर्म होता है कि वह पति के अनुशासन को स्वीकार करे। अगर राजनीति पर धर्म का अंकुश न हो तो वह मगनमस्त हाथी की तरह (बेलगाम) हो जाती है।”

हालांकि इस प्रवचन के बाद सोशल मीडिया पर लोगों की कड़ी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। 

शंभू कुमार सिंह ने लिखा है…..
ये है बीजेपी की राजनीति। बीजेपी जानती है कि भारत में जितना धार्मिक आडंबर फैलेगा। अपर कास्ट मतलब हिंदू धर्म के लाभार्थी सत्ता में बने रहेंगे। वह इसलिए बाबा साहेब के वैज्ञानिक सोच वाले संविधान की धज्जियां उड़ाती है। वह हर धर्म को खाद पानी देकर आपस में लड़ाती है। उसे पता है कि हिंदू धार्मिक बहूलता की वजह से उसकी सत्ता बने रहेगी। दूसरे धर्मवाले इस खेल में फंसे हुए हैं। बीजेपी फंसा रही है। हिंदू धर्म के लाभार्थी अपर कास्ट सत्ता में रहेगा। बाकी दूसरे धर्म के लोग लड़ते रहिए। आप लड़ेंगे तभी हिंदू धर्म जीतेगा। मतलब अपर कास्ट की सत्ता बनी रहेगी।

jain-muni

सत्य नारायण ने सिर्फ एक लाइन में लिखा है…
कपड़े पहने हुए नंगो को भाषण देने के लिए असली नंगा आया
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शेष ने लिखा है…

एक ‘निर्वस्त्र’ संघी जैन साधु हरियाणा विधानसभा में राज्यपाल, मुख्यमंत्री और अध्यक्ष के आसन से भी ऊंचा बनाए गए आसन पर बैठ कर ध्यान से सुनते सभी दलों की महिला और पुरुष विधायकों (भक्तों) को संबोधित कर रहा है- 
“राजनीति (पत्नी) पर धर्म (पति) का अंकुश जरूरी है। धर्म पति है, राजनीति पत्नी। हर पति की यह ड्यूटी होती है अपनी पत्नी को संरक्षण दे। हर पत्नी का धर्म होता है कि वह पति के अनुशासन को स्वीकार करे। अगर राजनीति पर धर्म का अंकुश न हो तो वह मगनमस्त हाथी की तरह (बेलगाम) हो जाती है।”
(जैन साधु के मुंह से सीधे मनु-स्मृति की पति-पत्नी और स्त्री-पुरुष नियमावली सुनना कैसा लगा? गुड-गुड फील हो रहा है या नहीं…!)

अगर किसी को यह लगता है कि यह कोई काल्पनिक दृश्य है तो उस पर रहम। लेकिन कल देश में पहली बार हरियाणा में यही हुआ है। दीनानाथ बत्रा की मार से पहले ही मरते हरियाणा विधानसभा के मानसून सत्र की शुरुआत इसी साधु के प्रवचन से हुई। 

मोदी के दीवाने और पाकिस्तान को शैतान से भी बड़ा बताने वाले इस संघी जैन साधु ने यह भी कहा कि “अगर सत्र के पहले ही दिन आपने धर्म को अपने यहां बे बैठा लिया, राजनीति के तमाम घाट अपने आप गंगा की तरह शुद्ध होते जाएंगे। खट्टर सरकार पर भगवाकरण करने का आरोप लग सकता है, पर मैं आपसे निवेदन करना चाहूंगा कि यह राजनीति का शुद्धिकरण है।”
सबसे पहले तो यह कि जिस आयोजन के खिलाफ तूफान खड़ा हो जाना चाहिए था, वहां कांग्रेस से लेकर बाकी तमाम गैरभाजपाई विधायक ‘ध्यान से’ राज्यपाल, मुख्यमंत्री और अध्यक्ष के आसन से भी ऊपर बैठे निर्वस्त्र संत की मनु-स्मृतीय उवाच चाट रहे थे। यह संविधान की शपथ लेकर राज करने वाली भाजपा की सरकार है, जिसने संविधान में दर्ज नियम-कायदों और मूल्यों को लात मारते हुए यह आयोजन किया। लेकिन उस विधानसभा में और किन दलों के विधायक “ध्यान से” इस “संत” का प्रवचन सुन रहे थे? अब किन दलों की ओर से इसके खिलाफ कोई आंदोलन किया जाएगा, विरोध दर्ज किया जाएगा?

धर्म को पति और राजनीति को पत्नी घोषित करता हुआ वह संत क्या मनु-स्मृति में दर्ज पति-पत्नी नियमावली को देश-समाज में लागू करने की बात नहीं कर रहा, जिसमें स्त्री सिर्फ और सिर्फ गुलाम है? 
यानी यह संत अगर राजनीति को धर्म का गुलाम बनाने की बात कर रहा है, तो इसकी तो मंशा तो समझी जा सकती है, लेकिन सत्तर साल की आजादी के बाद इंसानी समाज बनाने की ओर बढ़ते और लड़ते हुए किसी तरह यहां तक पहुंच सके देश को यह किस अंधेरे जहर में झोंक देने की कोशिश है?
ठीक है कि संसद और विधानसभाओं में पहले भी साधुओं और साध्वियों का जमावड़ा है। कम से कम वह वोट तो लेकर आया है! मगर क्या अब विधानसभा और संसद जैसी जगहों इन साधुओं को राष्ट्रपति, राज्यपाल, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री जैसे पदों से ऊपर की कुर्सी पर बिठा कर जहरीले प्रवचन करा कर सत्र की शुरुआत की जाएगी? अभी जैन, फिर हिंदू, फिर मौलाना, फिर पादरी?
इंतजार कीजिए कि कब इस देश को आइएसआइएस और तालिबान की आग में खाक कर दिया जाएगा, झोंक तो दिया ही गया है।

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